सम्पादकीय

देश की दिशा और दशा में सुधार जरूरी


भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और अपनी महत्वपूर्ण आध्यात्मिक छबि के लिए लंबे समय से विख्यात है। आजादी से पूर्व भारत ने लंबी गुलामी झेली है। पहले मुगलों ने और बाद में अंग्रेजों ने इस देश पर राज किया, किन्तु वे हमारी अन्तरआत्मा को विनष्ट नहीं कर पाए। यही कारण है कि भारतीयों के नैतिक संस्कार आज भी अपनी गरिमा व श्रेष्ठता के लिए प्रसिद्ध हैं।


भारतीय संस्कृति अपनी विलक्षण प्रकृति के लिए जानी जाती है। इतने दिनों की गुलामी के बावजूद हमने अपने संस्कार नहीं त्यागे और सतत् विश्व को प्रेम, सत्य, अहिंसा, शांति और वसुदैव कुटुम्बकम् का संदेश देते रहे । यहीं पर राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, कबीर व नानक जैसे महापुरुषों ने जन्म लिया और समूचे विश्व को मानवता के उत्थान का संदेश दिया, किन्तु विगत कुछ दशकों से पाश्चात्य सभ्यता की चकाचौंध ने भारतीय युवा पीढ़ी को इस तरह गुमराह कर दिया कि वे अपनी दिशा और दशा दोनों भूल बैठे हैं। भौतिकता की चमक- दमक में उन्होंने भारतीय संस्कृति के नैतिक आदर्शों की अवहेलना कर उन्माद, फूहड़ता और शोर-शराबे के वातावरण को अपना लिया। फैशन परस्ती, ड्रग सेवन और अनैतिक कार्यों में संलिप्त होकर, इस गुमराह पीढ़ी ने भटकाव की राह पकड़ ली है।


हमारे महानगरों में फैशन के नाम पर भोगवादी संस्कृति का जो नंगा नाच हो रहा है, वह किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं ठहराया जा सकता। लोगों में स्वदेशी, सादगी और राष्ट्रप्रेम की भावना अब खोजना ही मुश्किल हो गया है। आज हर जगह 'स्वार्थ' महत्वपूर्ण हो गया है और 'त्याग' की बात करना ही कोई पसंद नहीं करता। यही तो हमारे नैतिक पतन का मुख्य कारण है। वर्तमान में जो अपराध, भ्रष्टाचार और दुराचार बढ़ रहे हैं, उसका मूल कारण भी इन्हीं सबमें छिपा हुआ है।


अत: देश को प्रगति के मार्ग पर अग्रसर करने के लिए यह नितान्त आवश्यक है कि देश की दिशा और दशा दोनों में अविलम्ब सुधार लाया जाए