आत्म सुधार हेतु पहल आवश्यक
मानव जीवन बड़ा अनमोल है, लेकिन दुर्भाग्यवश हम इसके मूल्य से अवगत नहीं हैं। समयचक्र में उलझा हुआ इंसान कई बार असावधानीवश आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त होकर अपने जीवन को नष्ट कर लेता है, अतः ऐसी स्थिति में यदि उसे सही दशा और दिशा उपलब्ध हो जाए तो वह आत्मसुधार कर अपना जीवन पुनः संवार सकता है।
जब व्यक्ति विवेकहीन हो जाता है, तब उसके मन-मस्तिष्क में अनेक तरह के अनर्गल विचार भटकने लगते हैं। ये विचार उसे दिशाहीन बनाकर आपराधिक गतिविधियों की ओर प्रेरित करते हैं और ऐसी स्थिति में वह व्यक्ति कर्तव्यविमूढ़ होकर किसी न किसी अपराध में संलिप्त हो जाता है। यह अपराध अगर सामने आ गया तो परिणामस्वरूप उसे कैद भी हो सकती है। यद्यपि न्यायपालिका तो अपना काम करती ही है, लेकिन इसका एक दूसरा पहलू यह भी है कि हम अपराधियों से घृणा न करते हुए, केवल अपराध को समाप्त करने की दिशा में कार्य करें।
अक्सर यह देखा गया है कि लोग किए गए अपराध के साथ ही साथ, अपराधी से भी घृणा करने लगते हैं, जिसका उस अपराधी के मन-मस्तिष्क पर बड़ा ही विकृत प्रभाव पड़ता है और वह हताश व निराश होकर दिशाहीन हो जाता है।
हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि अपराधी व्यक्ति भी दरअसल, एक इंसान ही है और उसकी अन्तर्रात्मा भी उतनी ही पवित्र है, जितनी कि एक सामान्य मनुष्य की होती है। अत: यदि इन विकारों को दूर कर दिया जाए, तो उसे फिर एक नया जीवन उपलब्ध हो सकता है। यदि हम सुधारात्मक प्रयासों की ओर गौर करें तो यह कह सकते हैं कि अच्छी शिक्षा, अच्छा साहित्य एवं सत्संग एक अपराधी के जीवन में भी चमत्कारी बदलाव ला सकता है, बशर्ते वह स्वयं बदलने व सुधरने के लिए आंतरिक रूप से तैयार हो।