खैर है- युद्ध टल गया।
ईरान के जनरल सुलेमानी की हत्या से ईरान और अमेरिका के बीच गहरे तनाव की स्थिति निर्मित हो गई थी। दोनों ही देश एकदूसरे पर दबाव बनाने का प्रयास कर रहे थे, ऐसे में स्थिति काफी विस्फोटक हो चुकी थी और ऐसा लग रहा था कि शीघ्र ही एक और महायुद्ध होने वाला है, लेकिन शुक्र है कि संभावित खतरा टल गया और शान्ति के प्रयास होने लगे।
गौरतलब है कि जनरल सुलेमानी की हत्या से ईरान और उसके समर्थकों में भारी रोष उत्पन्न हो गया थाजब सुलेमानी की हत्या का बदला लेने के लिए ईरान ने अमेरिकी बेस कैंप पर मिसाइलों से हमला किया तो सार विश्व एक तरह से स्तब्ध रह गयाअब न तो अमेरिका पीछे हटना चाहता था, न ही ईरान झुकने वाला था। तनातनी के इस माहौल से सार विश्व चिन्तित हो उठा था। लोग तीसरे विश्वयुद्ध की कल्पना से ही सिहर उठे थे। यदि अमेरिका के साथ नाटो के सदस्य देशों का समर्थन था, तो ईरान के साथ भी कतिपय इस्लामिक देशों का सपोर्ट था।
स्मरण रहे कि सीरिया, लेबनान यमन एवं गाजा पट्टी इत्यादि का क्षेत्र जनरल सुलेमानी के निष्ठावान लड़ाकों का इलाका माना जाता रहा है। यहां पर हथियारबंद लड़ाकों के कई समूह सक्रिय हैं। ऐसा अनुमान है कि वहां पर कुल 1,40,000 लड़ाके हैं, जो इस्लाम के नाम पर किसी भी स्थिति में मर-मिटने को तैयार हैं। ईरान को इनका समर्थन भी मिल सकता था।
दरअसल, कौन किसका साथ देता, यह तो तब मालूम पड़ता, जब वास्तव में युद्ध होता । खैर है कि युद्ध के काले बादल अब छंटने लगे हैं और 'शान्ति के सूर्य' के उदय होने की संभावना बढ़ गई है।
मोटे तौर पर देखा जाए तो अभी सिर्फ युद्ध टला है, लेकिन तनाव समाप्त नहीं हुआ है। हकीकत में इस समय अमेरिका के संयम की परीक्षा है और यदि अमेरिका ने संयम रखा तो शीघ्र ही परिस्थितियां सामान्य हो सकती हैं। लोग पूर्व में दो विश्वयुद्धों से हुई तबाही को झेल चुके हैं और अब कोई भी देश यह नहीं चाहता है कि तीसरा विश्वयुद्ध हो, अतः शान्ति की स्थापना में ही सबका भला है।