चिन्तन

भारतीय संस्कति के मूलतत्व


भारतीय संस्कृति अपने आपमें बड़ी विलक्षण है। इसमें जहां प्रखर मानवतावादी विचारों का सृजन हुआ है, वहीं आध्यात्मिक मूल्यों के प्रति भी आस्था प्रदर्शित की गई है। इन्हीं दो आयामों के कारण भारतीय संस्कृति की छबि सम्पूर्ण विश्व में अनुकरणीय मानी जाती है।


सनातन भारतीय संस्कृति ने हमारे समक्ष जो मानवतावादी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है, उसी की बदौलत हमारे देश में महान् संस्कारों का उद्भव हुआ है। जहां एक ओर आध्यात्मिक सोच ने हमें महत्वपूर्ण संस्कार प्रदान किए हैं, वहीं कृषि ने हमारी ग्राम संस्कृति को निखारा और संवारा है। इस तरह हम देखते हैं कि कृषि और आध्यात्म के समन्वय से ही भारतीय संस्कृति के व्यापक स्वरूप का उद्भव हुआ है।


किसी ने सच ही कहा है कि भारत की आत्मा ग्रामों में निवास करती है। दरअसल, भारत की आत्मा और आध्यात्म दोनों ही मूलत: ग्रामीण संस्कृति में पुष्पित और पल्लवित हुए हैं।


गौरतलब है कि हमारी संस्कृति ने धर्म और कृषि को इस तरह सींचा है कि जिसके फलस्वरूप जो फल लगे हैं, वो आज भी हमारे लिए गौरव का केन्द्र हैं।


हमारे तीर्थस्थल जहां धार्मिक क्रियाकलापों का केन्द्र माने जाते रहे हैं, वहीं दूसरी ओर हमारी परंपरागत कृषि भरपूर उत्पादन कर साक्षात् अन्नपूर्णा की भूमिका अदा कर रही है। इस तरह हम कह सकते हैं कि भारत आध्यात्म और कृषि का केन्द्र होने के साथ-साथ, विश्व का मार्गदर्शक भी है।


वर्तमान दौर में कृषि और धर्म दोनों के मायने बदलते से नजर आ रहे हैं। अत: ऐसी स्थिति में धर्म की पुनर्स्थापना कर, कृषि संस्कृति के उत्थान के लिए नए सिरे से प्रयास करना नितान्त आवश्यक हो गया है। जब तक हम कृषि और धर्म के एकीकृत स्वरूप को अपनी युवा पीढ़ी को समझा नहीं पाएंगे, तब तक हमारा कृषि प्रधान राष्ट्र भला कैसे खुशहाल हो पाएगा?