कई सवाल खड़े कर गया हैदराबाद एनकाउंटर
पिछले दिनों हुए हैदराबाद एनकाउंटर ने देश के सामने कई सवाल खड़े कर दिए। सामान्य वर्ग से लेकर कानूनविद् तक हैरान हैं कि अगर इसी तरह पुलिस स्वयं ही न्याय करने पर आमादा हो जाएगी तो न्यायालयों का क्या होगा? देश में बढ़ती दुष्कर्म की घटनाओं ने जनता को उद्वेलित कर दिया है। खासतौर पर महिलाओं में जिस तरह से भय और असुरक्षा का भाव निर्मित हो रहा है. उससे उनके अभिभावक एवं परिजन भी काफी चिन्तित हैं।
दिल्ली में निर्भया कांड के आरोपियों को जब 7 वर्ष बाद भी फांसी की सजा नहीं हुई तो लोगों का देश की कानूनी प्रक्रिया पर से विश्वास डिग जाना एक तरह से स्वाभाविक ही था। अब जबकि हैदराबाद एनकाउंटर के द्वारा पुलिस ने चार दुष्कर्मियों को मौत के घाट उतार दिया तो महिलाओं में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। पूरे देश में पुलिस की प्रशंसा होने लगी और उन्हें शाबाशी दी जाने लगी। हैदराबाद में तो सार्वजनिक तौर पर पुलिस के जवानों पर फूल बरसाए गए और जगहजगह मिठाइयां बांटी गईं।
गौरतलब है कि कानून के दृष्टिकोण से पुलिस द्वारा किया गया यह एनकाउंटर सही नहीं था। हमारे संविधान में पुलिस को दंड देने का अधिकार नहीं है। अतः पुलिस द्वारा किया गया एनकाउंटर अभी भी सवालों के घेरे में है और मानव अधिकार के समर्थक इसे अनुचित बता रहे हैं, किन्तु देश की अधिकांश जनता पुलिस के उक्त कार्य की मुक्तकंठ से प्रशंसा कर रही है। अब सरकार को यह देखना चाहिए कि आखिर जनता क्यों ऐसा कर रही है?
वास्तव में देखा जाए तो इस घटना से प्रदेश एवं केन्द्र की सरकारों को सबक लेना चाहिए और देश से गुंडाराज को खत्म करने के लिए ऐसे कड़े कानून बनाना चाहिए ताकि अपराध करने से पहले अपराधी को दस बार सोचना पड़े। दूसरी तरफ, महिलाओं को भी स्वयं को सशक्त एवं जागरूक बनाने का प्रयास करना चाहिए ताकि इस तरह की घटनाओं का वे बहादुरी से सामना करते हुए अपराधियों को मात दे सकें।