संपादकीय

अपराधियों के मन में कानून का खौफ पैदा करना जरूरी


बहू-बेटियों की सुरक्षा का मुद्दा आज देश की ज्वलन्त समस्या बन चुका है। निर्भया कांड के बाद देश में जिस तरह से आवाम ने जागरूकता प्रदर्शित की थी, उससे ऐसा लग रहा था कि अब देश जाग चुका है और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलेगी, लेकिन उस घटना के वर्षों बाद भी अभियुक्तों को अभी तक फांसी की सजा नहीं दी जा सकी है।


आजकल देश में जिस तरह से महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहे हैं, उससे महिलाओं का घर से निकलना ही मुश्किल हो गया है। यौन शोषण और बलात्कार के मामले सिर्फ युवतियों तक ही सीमित नहीं हैं, वरन् छोटी-छोटी बच्चियों के साथ मुंह काला करने में भी दरिन्दों को शर्म नहीं आ रही है।


देश की जनता यह जानना चाहती है कि कानूनी प्रक्रिया में इतनी देर क्यों लगती है और क्यों बहशी दरिन्दे बार-बार जमानत पर छूटकर वही दुष्कृत्य दोहराते रहते हैं तथा शासन व प्रशासन लाचार होकर यह सब देखता रहता है। देश की समस्याओं के प्रति जनता और सरकार में चिन्ता तो दिखाई देती है, लेकिन सिर्फ उससे कुछ भी नहीं होता । वास्तव में देखा जाए तो इसका समाधान ढूढना अधिक जरूरी है।


ऐसा लगता है कि देश की न्यायिक व्यवस्था के प्रति लोगों का विश्वास धीरे-धीरे कम होता जा रहा है । यद्यपि देश की जनता का तो पुलिस व्यवस्था पर से भी अब भरोसा उठता जा रहा है, लेकिन जिस तरह से तेलंगाना पुलिस ने दुष्कर्म के आरोपियों को एनकाउंटर में मौत के घाट उतार दिया, उससे जनता को बड़ी राहत मिली।


अपराधियों को सजा देने का यह तरीका भले ही कानून की दृष्टि से तर्कसंगत न हो, किन्तु जनता खुलकर पुलिस एनकाउंटर की सराहना कर रही है। फॉस्ट ट्रैक अदालतों का गठन हो जाने और शीघ्र ही फैसला आ जाने के बावजूद भी फांसी देने में प्रशासन को काफी वक्त लग जाता है। दरअसल, जेल जाना अब शातिर अपराधियों की समस्या नहीं है, इसलिए उनके मन में जेल का भय भी नहीं है। यह कोई अच्छा संकेत नहीं है।


आज आवश्यकता इस बात की है कि अपराधियों के मन में काननू के प्रति खौफ पैदा किया जाए, ताकि वे कोई भी अपराध करने से पहले कम से कम दस बार उसके परिणाम के बारे में सोच सकें।