महिला कब तक रहेगी अबला?
हैवानियत और यौन शोषण की शिकार महिलाओं की कहानी तो बड़ी लम्बी है। इस पुरुष प्रधान समाज में हर युग में किसी न 'किसी रूप में महिलाओं का शोषण, उत्पीडन और दमन होता रहा है। फिर चाहे वह सीता हो अथवा द्रोपदी, नाम से कोई विशेष फर्क पड़ता भी नहीं है।
जब कभी निर्भया अथवा हैदराबाद गैंग रेप जैसी घटनाएं घटित होती हैं, समाज में एक विशेष प्रकार का आक्रोश मिश्रित दुःख व्याप्त हो जाता है, किन्तु तमाम प्रयासों के बावजूद न तो समाज, न ही कानून इन नरपिशाचों की हैवानियत पर अंकुश लगाने में सफल हो पाती। आज तो हालत इतने बद्तर हैं कि बहन-बेटियों का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। गली-चौराहों पर खड़े मजनू किस्म के वहशी दरिन्दें भूखे भेड़ियों की तरह उन्हें घूरते रहते हैं और कभी-कभी तो सरेआम उनका हाथ पकड़ने का दुस्साहस भी कर बैठते हैं। यदाकदा इनकी भीड़ पिटाई भी कर देती है, पर विकृत मानसिकता के शिकार और नशे के आदि ये लोग तमाम कोशिशों के बावजूद सुधरने का नाम नहीं लेते। यहां तक कि सजा हो जाने के बावजूद जेल से छूटने पर ये पुनः अपनी घिनौनी हरकत चालू कर देते हैं।
महिलाओं के शोषण का दूसरा पहलू इससे भी ज्यादा स्याह और भयानक है। एक बार इन मनचलों और मजनू टाइप लोगों को कठोर कार्रवाई करके नियंत्रित किया जा सकता है, किन्तु उन रसूखदार और अमीर लोगों पर नकेल कसना काफी मुश्किल है जो हनीट्रैप कांड जैसे मामलों में संलिप्त पाए जाते हैं और नारी देह को सिर्फ विलासिता का माध्यम मानकर उनका अपने तुच्छ स्वार्थों के लिए शोषण करवाते हैं।
भारतीय समाज में प्रायः महिलाओं को अबला कहकर उनको कमजोर और निरीह साबित करने का प्रयास किया जाता है, किन्तु वास्तविकता इससे परे है। यदि नारी चाहे तो वह संगठित होकर शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक स्तर पर पुरुषों का न केवल मुकाबला कर सकती है, वरन् समाज में पुनः अपना शक्तिशाली वर्चस्व भी कायम कर सकती है। लेकिन अबला को सबला होने के लिए स्वयं ही प्रयास करने होंगे। स्मरण रहे कि जब तक वह अपनी शक्ति का चमत्कार नहीं दिखाएगी, तब तक पुरुष वर्ग उसे नमस्कार नहीं करेगा।