चरमराती अर्थव्यवस्था पर काबू पाना है बेहद जरूरी
देश की अर्थव्यवस्था मंदी के कारण चरमराती नजर आ रही है, लेकिन सरकार इस हकीकत को खुले दिल से स्वीकार करने में हिचकिचा रही है। देश के उद्योग-धंधों के हाल तो वैसे ही खस्ता हैं, रही सही कसर बेकाबू महंगाई पूरी कर रही है।
कुल मिलाकर देश का मध्यम वर्ग इस अव्यवस्था से बुरी तरह त्रस्त है। मंदी का असर प्रायः हर क्षेत्र में दिखाई दे रहा है। जिस तरह से औद्योगिक प्रतिष्ठानों में कर्मचारियों की छंटनी हो रही है, उससे तो ऐसा लगता है कि आने वाले दिनों में बेरोजगारी की समस्या और भी अधिक विकराल हो सकती है।
वैसे भी देश में रोजगार की उपलब्धता का संकट तो पहले से ही गहराया हुआ है, लेकिन यदि इसी तरह से कर्मचारियों की छंटनी जारी रही तो भविष्य में स्थिति कितनी भयावह हो जाएगी, इसका अंदाज लगाना निश्चित ही फिलहाल मुश्किल है।
चरमराती अर्थव्यवस्था पर काबू पाना फिलहाल देश के सामने सबसे बड़ा प्रश्न है। एक बार अन्य राजनैतिक मुद्दों को कुछ दिन टाल भी दिया जाता तो देश की सेहत पर इतना प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता, किन्तु आर्थिक मंदी के कारण आए दिन जो समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं, उनके कारण देश बेहाल है।
जीएसटी के प्रभाव से अभी तक मझोला व्यापारी वर्ग उबर नहीं पाया है और दिहाड़ी वालों की तो एक तरह से कमर ही ट गई है।
ऐसी स्थिति में सरकार यदि मूल समस्याओं से ध्यान हटाकर, अन्य साधारण मसलों पर उलझती नजर आती है तो वास्तव में देश का चिन्तित होना लाजमी है।