क्या चुनाव परिणाम जनता के मानसिक
असमंजस को व्यक्त कर रहे हैं?
यदि महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों के नतीजे को छोड़ दें तो आपको ऐसा नहीं लग रहा है कि इस बार के चुनावों के परिणाम जनता के मानसिक असमंजस को व्यक्त कर रहे हैं। महाराष्ट्र में तो प्रायः सभी को लग रहा था कि वहां इस बार भी केशरिया परचम लहराएगा और परिणाम भी लगभग उसी तरह के आ रहे हैं। लेकिन हरियाणा में जिस तरह से सत्ता पक्ष को करारा झटका लगा है, उससे तो यही साबित हो रहा है कि इस बार जनता ने दिल खोलकर भाजपा को वोट नहीं दिया। कहीं न कहीं थोड़ी बहुत कसर अवश्य रह गई है। वैसे भी मनोहरलाल खट्टर की अपनी कोई व्यक्तिगत लोकप्रियता तो थी नहीं, वे तो बस 'मोदी फैक्टर' के चलते सत्ता पर काबिज हो गए थे। इस बार जनता ने मोदी के चेहरे को नहीं, वरन् हरियाणा सरकार के पिछले कामकाज का आंकलन कर वोट दिया है। यही कारण है कि हरियाणा में भाजपा बैकफुट पर आती दिख रही है और दुष्यंत चौटाला किंगमेकर बनने जा रहे हैं। हालांकि अभी पूरे परिणाम नहीं आए हैं, फिर भी यह तो मानना पड़ेगा कि इस बार जनता ने सिर्फ मोदी के नाम पर एकतरफा वोट नहीं दिए हैं, जैसा कि विगत चुनाव में किया था।
इधर मध्य प्रदेश की झाबुआ सीट से जैसा परिणाम निकलकर सामने आया है, उससे कांग्रेसियों के चेहरों पर जहां मुस्कान फैल गई है, वहीं भाजपाइयों के चेहरे लटक गए हैं। वैसे झाबुआ लंबे अरसे से कांग्रेस का परंपरागत गढ़ रहा है, लेकिन विगत चुनाव में जिस तरह से भाजपा ने बढ़त बनाई थी, उससे तो यही लग रहा था कि कांतिलाल भूरिया की राह इतनी आसान नहीं है। अब देखना यह है कि इन चुनाव परिणामों से भाजपा का हाईकमान क्या सबक लेता है और जनता से पूर्व में किये गये वादों पर कहां तक अमल करता है। दरअसल, ये परिणाम कांग्रेस को कोई बहुत बड़ी दिलासा नहीं दे रहे हैं, पर इससे इतना तो स्पष्ट हो रहा है कि यदि कांग्रेस सही दिशा पकड़ ले तो वह पुनः जनविश्वास जीत सकती है।