बात उन दिनों की है जब नरेन्द्रनाथ अर्थात् स्वामी विवेकानन्द अपने पिता के असामयिक निधन के कारण गंभीर आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे थेउनकी दयनीय स्थिति को देखकर गुरु रामकृष्ण भी व्यथित हो गए। उन्होंने उनकी मदद करने के उद्देश्य से उनसे कहा- 'नरेन! माँ (महाकाली) ने मुझे अष्ट सिद्धियों व नौ निधियों की सौगात दी है। मैं स्वयं तो इनका कोई उपयोग न कर सका, पर मैं इन्हें तुम्हें सौंपना चाहता हूं। तुम इन्हें ले लो और अपनी बदहाली दूर कर लो।'
यह सुनकर नरेन सोच में पड़ गए और रामकृष्णजी से पूछे बैठे' इन सिद्धियों का क्या उपयोग है? क्या इनसे परमात्मा की प्राप्ति संभव है?' इस पर रामकृष्णजी ने उत्तर दिया- 'परमात्मा की प्राप्ति तो इनसे संभव नहीं, हाँ! कई चमत्कार अवश्य संभव हैं।' यह सुनकर नरेन्द्रनाथ मायूस हो गए और बोले'तब तो आप इन्हें अपने पास ही रखिए। मेरे जीवन में इनका कोई स्थान नहीं है।' नरेन्द्र का जबाव सुनकर स्वामी रामकृष्ण गद्गद् हो गए और उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहने लगे- 'तुम्हारी साधना सच्ची है, तुम्हारा विवेक सच्चा है। यह विवेक ही तुम्हें परमात्मा का साक्षात्कार करवाएगा।' वास्तव में कुछ ही वर्षों बाद स्वामी रामकृष्ण की भविष्यवाणी फलीभूत हुई और नरेन्द्रनाथ स्वामी विवेकानन्द के नाम से विश्वविख्यात हुए।