आत्मचिन्तन

यह ब्रह्मांड बड़ा विचित्र है। इसका विस्तार और इसकी व्यापकता की थाह आज तक कोई नहीं पा सका। कैसे इसकी रचना हुई और कैसे इतने विविधताभरे चराचर का संचालन हो रहा है, कोई नहीं जान सका, किन्तु फिर भी इतना तो कहा जा सकता है कि इसकी रचना किसी ऐसी शक्ति द्वारा हुई है जो अपने आपमें विलक्षण है और वह ही इस सृष्टि का आदि कारण है। इसी शक्ति को हम लोग भिन्न-भिन्न नामों से संबोधित करते हैं, यथा- ईश्वर, अल्लाह, गॉड या निराकर ब्रह्म।


सारे ब्रह्मांड का संचालन एक ऐसी ऑटोमेटिक प्रक्रिया से हो रहा है कि जिसे देखकर हर कोई हैरान हो जाता है। ऐसा लगता है किसी बहुत बड़े तकनीतिज्ञ या साफ्टवेयर इंजीनियर ने इसकी प्रोग्रामिंग कर युगों-युगों का डाटा कहीं सुरक्षित कर रखा है। परमात्मा या विधाता की लीला तो वह ही जाने, किन्तु मनुष्य यदि चाहे तो वह निष्ठा और परिश्रम द्वारा अपनी तकदीर भी बदल सकता है। ऐसा कहा जाता है कि भाग्य का लेखा कभी बदलता नहीं, लेकिन एक कर्मठ और पुरुषार्थी व्यक्ति के सामने तो भाग्य की देवी को भी अंततः झुकना ही पड़ता है।


यदि हम अपनी धरती के विकास पर ही गौर करें तो हम पाएंगे कि इसका वर्तमान स्वरूप निर्मित होने में लाखों वर्ष लग चुके हैं। कितने परिवर्तनों और उतार-चढ़ावों को झेलने के बाद आज उसे उसका यह वर्तमान स्वरूप प्राप्त हुआ है। विश्व का कितना अधिक आधुनिकीकरण हो गया है, यह अब हर कोई जानता है, लेकिन विश्व को इस स्तर तक पहुंचाने में हमारे पूर्वजों ने कितना परिश्रम किया है, यह बहुत कम लोग जानते हैं।


इसमें कोई दोमत नहीं है कि आज जिस स्थिति में हम लोग जीवित हैं, वह हमारे पूर्वजों के लंबे संघर्ष का परिणाम है। यदि हम आज इतनी सुविधाओं का उपभोग कर एक आरामदायक जीवन गुजार रहे हैं तो इसके लिए अनेक वैज्ञानिकों, इंजीनियरों एवं विद्वानों ने गहन परिश्रम अवश्य किया होगा। यह बात हमें सदा ध्यान में रखनी होगी कि भाग्य से अमीर तो इक्का-दुक्का ही बना होगा, किन्तु मेहनत करके कई कर्मठ लोग गरीब से अमीर अवश्य बने हैं। दरअसल, ईश्वर भी उनका ही साथ देता है जो बिना फल की आशा के सतत् कर्तव्य कर्म करते रहते हैं और यही जीवन व्यतीत करने का सबसे अच्छा तरीका भी है।


- हरिॐ तत्सत्