मार्मिक प्रसंग

भक्त के लिए हर परिस्थिति परमात्मा का प्रसाद है


अध्यात्म रामायण में भक्त की भक्ति का बड़ा ही मार्मिक प्रसंग है। वनवास के दौरान एक दिन राम और लक्ष्मण, सीताजी की तलाश में यत्र-तत्र भटक रहे थे। इसी बीच उन्हें एक स्वच्छ सरोवर दिखाई दिया। स्नान करने के उद्देश्य से दोनों भाई सरोवर में उतर गएउतरते समय उन्होंने अपने- अपने धनुष बाहर तट पर गाड़ दिए। जब वे स्नान करके बाहर निकले तो लक्ष्मणजी ने देखा कि उनके धनुष की नोंक पर रक्त लगा थाउन्होंने तुरन्त भगवान राम से कहा- 'भैया! शायद हम लोगों से अनजाने में हिंसा हो गई है। दोनों भाइयों ने तत्काल मिट्ट हटाकर देखा तो पता चला कि वहां एक मेंढ़क घायल अवस्था में पड़ा हुआ है और उसके शरीर से रक्त बह रहा था।


मेंढक की दयनीय स्थिति देखकर करुणासागर श्रीराम द्रवित हो गएउन्होंने मेंढ़क से पूछा- 'अरे मूर्ख, तूने हमें पुकारा क्यों नहीं? हम तुझे अवश्य बचा लेते। जब सांप पकड़ता है तब तो खूब आवाज लगाते हो, किन्तु अब धनुष लगा तो आवाज क्यों नहीं निकली?'


मेंढक ने उत्तर दिया- 'प्रभु! जब सांप पकड़ता है तो मैं 'राम-राम' चिल्लाता हूं, पर आज स्वयं भगवान धनुष लगा रहे हैं तो भला किसे पुकारता? बस, इसी क्षण को अपना सौभाग्य मानकर खामोश रहा।' उक्त दृष्टान्त का आशय यही है कि एक सच्चा भक्त जीवन की हर परिस्थिति को परमात्मा का आशीर्वाद मानकर उसे सहर्ष स्वीकार करता है। सख और द:ख दोनों ही परिस्थितियों में वह प्रसन्न रहता है।


- हरिॐ तत्सत्