दर्शन

धर्म का निहितार्थ


धर्म यानी समुद्र के समान शांत रहकर नि:स्वार्थ भाव |से एकाग्र होकर विचार करना है। सेवा चाहे राष्ट्र की हो, समाज की हो या परिवार की। यदि आपके साथ कोई नहीं है, परन्तु आपका धर्म, आपकी नैतिकता आपके साथ है, तो आप निश्चित ही सफलता की सीढ़ियां निरंतर चढ़ते रहेंगे। धर्म हमें विवेक देता है, धर्म हमें त्याग, बलिदान और सत्य मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। सत्य मार्ग पर चलना धर्म का एक छोटा-सा अंग है।


हमारा चिंतन, हमारा व्यवहार सत्य पर निर्भर करता है। व्यवहार में हमारी मान्यताओं को हम कभी-कभी इतना महत्व देते हैं कि सत्य से दूर हो जाते हैं। यही हमारे पतन का कारण होता है। हम दूसरे की भावनाओं को समझना नहीं चाहते, क्योंकि हम अपने स्वार्थ में लीन हैं, हमारी अपनी कायरता ही शत्रुओं, कुंठाओं और तनावों को जन्म देती है।


आज का युग प्रगतिवादी विचारधारा का युग हैहमें प्रगति के पथ पर चलना है, तो हमारे अंदर की निराशा, कुंठाओं और स्वार्थ को समाप्त करना होगा। दुनिया के लोग प्रगति की दौड़ में एक-दूसरे को पीछे धकेलने का प्रयास कर रहे हैं। हम भी इस दौड़ में हैं, परन्तु अपने धर्म की आस्था और अपनी परंपरा के साथ।


इस विश्व में अनेक प्रकार की विचारधाराएं और दर्शन हैं, परन्तु भारतीय दर्शन विश्व पर अपनी अलग छाप छोड़ता है, इसलिए कि वह धर्म पर चलता है। गलत राह पर चलने की आदत उन्हें होती है, जो स्वयं को धर्म से अलग करते हैं। उनकी अज्ञानता और स्वार्थ की भावना से इस समाज को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।


विवेकशील व्यक्ति भविष्य का सही अनुमान करता है और उसके अनुसार अपने कार्य को गति देता है। पूर्व में कोई भी अच्छा कार्य साधारण प्रतीत होता है, परन्तु उस परिणाम अच्छे होते हैं