चिन्तन

साधना और सिद्धि


साधना और सिद्धि का परस्पर गहरा रिश्ता है। कहा जाता है कि जो साधक आसक्तिरहित होकर निष्काम भाव से साधना करता है, उसे अपने लक्ष्य प्राप्ति में सिद्धि अवश्य प्राप्त होती है। ईश्वर की आराधना करने से अथवा किसी मंत्र अथवा तंत्र द्वारा अनुष्ठान करने से भी वांछित सफलता प्राप्त हो सकती है।


कोई भी साधना करने से पहले उस साधना के संदर्भ में तमाम जानकारियां एकत्र कर लेना परम आवश्यक होता है। हमारे शास्त्रों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कोई भी साधना करने से पहले एक साधक को उक्त साधना के संदर्भ में पूर्ण जानकारियां एकत्र कर लेनी चाहिए, तभी साधना की शुरुआत करनी चाहिए। इस संदर्भ में किसी आचार्य, गुरु अथवा विद्वान व्यक्ति का मार्गदर्शन प्राप्त करना अधिक उपयुक्त होता है। साधना को जितनी दृढ़ निष्ठा और विश्वास के साथ किया जाएगा, सफलता भी उतनी ही शीघ्र मिलेगी। किसी भी साधना में सबसे बडी चीज होती है विश्वास।


जब तक साधक को साधना की सफलता और उसके परिणाम पर पूर्ण विश्वास नहीं होगा, तब तक उसे आशातीत सफलता नहीं मिलेगी। यदि किसी व्यक्ति को साधना में असफलता प्राप्त हो रही है अथवा उसकी प्रगति धीमी है तो उसके पीछे अवश्य कोई न कोई कारण होना चाहिए। प्रायः देखा गया है कि संकल्प शक्ति के अभाव के कारण अक्सर अनुष्ठान असफल हो जाते हैं अथवा उनमें पूर्ण सफलता नहीं मिल पाती। अत: ऐसी स्थिति में साधकों को आत्मचिन्तन करना चाहिए और कारण का पता लगाना चाहिए।


- हरिॐ तत्सत्