आत्मचिन्तन

जीवन क्षणभंगुर है, अतः जो आज है वह कल नहीं रहेगा और जो व्यक्ति इस सच्चाई को गहराई से समझ लेता है, 'वह मुक्ति की राह पर चल निकलता है। मानव जीवन की सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि व्यक्ति संसार में आता भी खाली हाथ है और यहां से जाता भी खाली हाथ ही है, किन्तु फिर भी वह अपना सम्पूर्ण जीवन काम, क्रोध, लोभ व मोह की अग्नि में झोंककर लगातार भ्रम में जीता है। वास्तव में देखा जाए तो यही भ्रम उसके तमाम कष्टों का प्रमुख कारण है।


इस संसार में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो दुःख चाहता हो, किन्तु अधिकांश व्यक्ति कर्म तो ऐसे ही करते हैं, जिनसे उन्हें दु:ख मिले। दरअसल, इस संसार में जो कुछ भी हमारे साथ हो रहा है, उसके जिम्मेदार हम स्वयं ही हैं। लोग बेवजह अपने भाग्य को कोसते रहते हैं व ईश्वर से शिकायत करते रहते हैं, लेकिन भूलकर भी अपने हृदय में झांक कर यह देखने का प्रयास नहीं करते कि आखिर उनके साथ ऐसा क्यों हो रहा है।


मनुष्य का जीवन बड़ा महत्वपूर्ण है और परमात्मा ने उसे जो विलक्षण व्यक्तित्व दिया है वह तो उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है। अतः मनुष्य का यह कर्तव्य है कि वह अपने जीवन का सदुपयोग करते हुए अन्य व्यक्तियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बने।


मनुष्य अन्तर्मुखी होकर वास्तविक स्थिति का जब परीक्षण व अवलोकन करता है तो उसे बहुत ग्लानि होती है और उसे ऐसा लगता है कि उसने अपना अमृत तुल्य जीवन, कौड़ियों के मोल गंवा दिया।


स्मरण रहे कि सांसारिक क्रियाकलापों में दिन-रात फंसे रहने वाले कभी वास्तविक शान्ति प्राप्त नहीं कर पाते और अपना जीवन यूं ही बर्बाद कर डालते हैं। ऐसे व्यक्तियों को न तो माया मिलती है, न ही राम उनके हाथ लगते हैं, इसीलिए महापुरुषों ने लोगों को कर्मठ, त्यागपूर्ण और परमात्मा के प्रति समर्पित होकर जीवन जीने की प्रेरणा दी है।


वास्तव में देखा जाए तो हम सब कठपुतली की तरह हैं और हमारी डोर उस विधाता के हाथ में है, जिसने यह विशाल ब्रह्मांड रचा है। अब जैसा वह नचाए, हमें नाचना होगा, क्योंकि उसकी मर्जी से जीने में ही हमारा कल्याण निहित है। यही भक्ति भावना है और यही समर्पण साधना है।


- हरिॐ तत्सत्